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रणथम्भौर में बाघ के हमले के बाद फूटा आक्रोश: मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने वनाधिकारियों की कार्यशैली पर उठाए सवाल

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रणथम्भौर नेशनल पार्क एक बार फिर बाघ के हमले की खबर से सुर्खियों में है। इस बार यह हमला रणथम्भौर दुर्ग स्थित जैन मंदिर में कार्यरत राधेश्याम सैनी पर हुआ, जिसकी जान चली गई। सुबह 4:30 बजे जब राधेश्याम शौच के लिए बाहर निकले तो घात लगाए बैठे बाघ ने उन्हें अपना शिकार बना लिया और शव को घसीट कर झाड़ियों में ले गया। वन विभाग की टीम ने फायरिंग कर बाघ को पीछे हटाया और शव को अस्पताल की मोर्चरी पहुंचाया गया।

इस दुखद घटना के बाद क्षेत्र में गहरा आक्रोश फैल गया। ग्रामीणों और मृतक के परिजनों ने गणेश धाम गेट पर धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया, जो करीब 32 घंटे तक चला। इस दौरान सवाई माधोपुर-कुंडेरा मार्ग पूरी तरह से बाधित रहा। गुस्साए ग्रामीणों और पुलिस के बीच कई बार तनातनी की स्थिति बनी, लेकिन रातभर धरना जारी रहा, जिसमें महिलाओं की भी बड़ी भागीदारी रही।

मंत्री की मध्यस्थता और ग्रामीणों की मांगें

धरना उस वक्त समाप्त हुआ जब प्रदेश के कृषि मंत्री और स्थानीय विधायक डॉ. किरोड़ी लाल मीणा खुद मौके पर पहुंचे और ग्रामीणों से सीधे संवाद किया। उन्होंने ग्रामीणों की 8 सूत्रीय मांगों पर गंभीरता से विचार करते हुए कई महत्वपूर्ण आश्वासन दिए। मंत्री ने मृतक के परिजनों को 25 लाख रुपये का मुआवजा दिलवाने का वादा किया, साथ ही एक सदस्य को संविदा पर नौकरी दिलवाने और 20 सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल को जयपुर बुलाकर मुख्यमंत्री व केंद्रीय वन मंत्री से वार्ता कराने की बात कही।

ग्रामीणों की मांगों में प्रमुख रूप से मृतक आश्रित को सरकारी नौकरी, 50 लाख रुपये का मुआवजा, 10 बीघा जमीन, रणथम्भौर के डीएफओ व सीसीएफ को निलंबन, श्रद्धालुओं के लिए छाया-पानी की व्यवस्था, और आक्रामक बाघों का पुनः स्थानांतरण शामिल था।

वनाधिकारियों पर मंत्री का कड़ा रुख

डॉ. मीणा सिर्फ समझाइश देकर नहीं लौटे, बल्कि उन्होंने वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सीधा सवाल उठाया। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि रणथम्भौर के कई वनाधिकारी अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह हैं और कई तो नशे की हालत में रहते हैं। उन्होंने इसे 'दुर्भाग्यपूर्ण' बताते हुए कहा कि वे खुद आत्म-अवलोकन कर रहे हैं कि ऐसे अधिकारी अब तक सेवा में कैसे टिके हुए हैं। यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने वन विभाग की शिकायत की हो, लेकिन अब मामला गंभीर हो गया है।

मौत के बाद की कार्यवाही और आगे की दिशा

धरना समाप्ति के तुरंत बाद मंत्री ने मुख्य कार्यकारी अधिकारी को निर्देश दिया कि राधेश्याम सैनी का पोस्टमार्टम मेडिकल बोर्ड से करवाया जाए और शव परिजनों को सौंपा जाए। इस पूरे घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया कि बाघों के मूवमेंट को लेकर वन विभाग कितना लापरवाह है। यह दो महीने में तीसरी ऐसी घटना है जब किसी ग्रामीण को बाघ ने मार डाला हो।

सवालों के घेरे में रणथम्भौर का प्रबंधन

रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान सिर्फ पर्यटन का केंद्र नहीं, बल्कि सैकड़ों ग्रामीणों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी से भी जुड़ा हुआ है। हर बार घटना के बाद मुआवजे और आश्वासनों का दौर चलता है, लेकिन व्यवस्थाओं में सुधार अब तक नहीं हो पाया। बाघों का मानव बस्तियों के पास आना, श्रद्धालुओं के लिए सुरक्षा उपायों का अभाव, और वन विभाग की निष्क्रियता – ये सभी एक गंभीर संकट की ओर इशारा कर रहे हैं।

अब देखना यह है कि मंत्री की पहल और ग्रामीणों के विरोध के बाद क्या सरकार और वन विभाग वास्तव में कोई ठोस कदम उठाते हैं या यह एक और घटना केवल मीडिया की सुर्खियों तक ही सीमित रह जाएगी।

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