रणथंभौर नेशनल पार्क में रविवार, 12 मई को एक और दर्दनाक हादसा सामने आया जब ड्यूटी पर तैनात फोरेस्टर देवेंद्र चौधरी (35) की टाइगर हमले में जान चली गई। यह घटना न सिर्फ वन विभाग के लिए, बल्कि पूरे राज्य के लिए चौंकाने वाली रही, जहां एक समर्पित वनकर्मी को बाघ ने अपना शिकार बना लिया।
कैसे हुआ हमला
जानकारी के अनुसार, देवेंद्र चौधरी दोपहर करीब 1 बजे गुढ़ा चौकी से खाना खाकर जोगी महल ड्यूटी पर पहुंचे थे। ड्यूटी के दौरान, करीब 3 बजे वह ट्रेकिंग करते हुए छतरी क्षेत्र के पास दरवाजे के निर्माण कार्य को देखने जा रहे थे। तभी एक टाइगर अचानक झाड़ियों से निकला और उनकी गर्दन पर झपट पड़ा। हमलावर बाघ उन्हें जबड़े में दबोचते हुए करीब 20 फीट तक अंदर जंगल में घसीट ले गया और वहां पंजों से बुरी तरह नोच डाला।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, बाघ 15 मिनट तक शव के पास ही बैठा रहा। मजदूरों और अन्य वनकर्मियों द्वारा शोर मचाने पर टाइगर वहां से भाग गया। इसके बाद देवेंद्र का शव जिला अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
देवेंद्र चौधरी: एक समर्पित वनकर्मी
देवेंद्र मूल रूप से डीग जिले के नाख्यणा गांव के रहने वाले थे। वह आठ साल पहले अपने पिता की मौत के बाद अनुकंपा के तहत वन विभाग में नियुक्त हुए थे। हाल ही में, दो महीने पहले ही उन्हें फोरेस्टर से रेंजर पद पर पदोन्नत किया गया था। वे अपनी विधवा मां के इकलौते बेटे थे और परिवार का एकमात्र सहारा भी। मदर्स डे पर ही उन्होंने अपनी मां के साथ एक प्रोफाइल फोटो सोशल मीडिया पर साझा की थी, जिसे अब लोग आखिरी स्मृति के रूप में देख रहे हैं।
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फोरेस्टर देवेंद्र चौधरी अपनी मां के साथ |
पिछली घटनाओं की पुनरावृत्ति
रणथंभौर में यह बाघ द्वारा पिछले 25 दिनों में दूसरी मौत है। इससे पहले बूंदी जिले के 7 वर्षीय बालक कार्तिक सुमन की भी एक बाघ के हमले में जान चली गई थी। इससे यह साफ होता है कि रणथंभौर के कुछ क्षेत्रों में टाइगर मूवमेंट लगातार खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है।
हमलावर टाइगर कौन?
वन विभाग ने देर शाम तक हमलावर टाइगर की पहचान नहीं की थी, लेकिन आशंका जताई जा रही है कि यह मादा टाइगर रिद्धि या उसके तीन शावकों में से कोई एक हो सकता है। विभाग के अनुसार, इस क्षेत्र में ऐरो हेड टी-84 (जो इन दिनों बीमार है), नर बाघ टी-120, रिद्धि, अन्वी और अन्य शावकों सहित करीब 9 बाघों की सक्रिय मूवमेंट रहती है। इतने टाइगरों के लिए यह क्षेत्रफल अब छोटा पड़ता जा रहा है, जिससे इनका व्यवहार अधिक आक्रामक होता जा रहा है।
सुरक्षा संसाधनों की कमी
इस घटना ने एक बार फिर वनकर्मियों की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जानकारी के अनुसार, अधिकांश वनकर्मी बिना उचित सुरक्षा उपकरणों के जंगल में ट्रेकिंग करते हैं। उनके पास केवल एक लकड़ी की लाठी होती है, जो अक्सर जंगल से ही काटकर ली जाती है। रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान हेलमेट और अन्य उपकरणों का इस्तेमाल होता है, लेकिन सामान्य ट्रेकिंग के समय इन्हें नहीं दिया जाता।
प्रशासनिक हलचल और कार्रवाई
घटना की जानकारी मिलते ही एसडीएम अनूप सिंह, डीएफओ आरएन भाकर, डीएफओ पर्यटन प्रमोद कुमार धाकड़ और एएसपी रामकुमार कस्वां मौके पर पहुंचे। वहीं, कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीना सीधे जिला अस्पताल की मोर्चरी पहुंचे और घटना की जानकारी ली। उन्होंने कहा कि इस मामले की गंभीरता से जांच होनी चाहिए और मुख्यमंत्री एवं वन मंत्री से बात कर मृतक के परिवार को आर्थिक सहायता दिलाई जाएगी।
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टाइगर अटैक के बाद फोरेस्टर का शव पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल लाया गया |
त्रिनेत्र गणेश मंदिर मार्ग बंद
वन विभाग ने इस घटना के बाद तात्कालिक प्रभाव से त्रिनेत्र गणेश मंदिर जाने वाले मार्ग को 12 मई से आगामी आदेश तक बंद कर दिया है। यह मार्ग जोन नंबर 3 से होकर गुजरता है, जहां 13 से 14 बाघों की मूवमेंट बताई गई है। यह निर्णय जनसुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।
फोरेस्टर देवेंद्र चौधरी की यह दर्दनाक मृत्यु रणथंभौर जैसे बाघ बाहुल्य क्षेत्र में वनकर्मियों की सुरक्षा की अनदेखी को उजागर करती है। यह सिर्फ एक वनकर्मी की नहीं, पूरे तंत्र की हार है जो अब भी अपने संसाधनों में सुधार नहीं कर सका है। वन्यजीव संरक्षण के साथ-साथ, वहां काम करने वाले कर्मियों की सुरक्षा को भी प्राथमिकता देना अनिवार्य है। यदि टाइगरों का व्यवहार आक्रामक हो गया है तो ऐसे बाघों की पहचान कर उन्हें ट्रांज़लोकेट करना आवश्यक हो गया है। वरना ये घटनाएं बार-बार होती रहेंगी और जंगल की सेवा करने वालों को ही अपनी जान गंवानी पड़ेगी।